सुबेदार रामस्वरुप सिंह विक्टोरिया क्रोस का जन्म 12 अप्रेल 1919 को ठाकुर जोरावर सिंह के घर गांव खेड़ी-तलवाना जिला महेंन्द्रगढ़(हरियाणा) में हुआ।ये तंवर राजपूत हैं।ये 12 अप्रेल 1937 को प्रथम पंजाब रेजिमेंट के झेलम ग्रुप में भर्ती हुए।ये 25 अक्टूबर 1944 को शहीद हो गए।
पांचवां भारतीय डिवीजन जिसे अग्नि पिंड़ भी कहा जाता है बर्मा के टिड्डिम क्षेत्र में उतरा।डिवीजन के सरकारी इतिहास में लिखा है कि इस डिवीजन के सैनिकों को अपने गंतव्य स्थान तक पहुंचने के लिए अति ढालु पहाडियों पर से एक हाथ पर रेंग कर चलना पड़ा।यह रास्ता चीन की पहाड़ियों के मध्यम था और इसे पार करने के लिए पांच सप्ताह का समय लग गया।ये रास्ते इतने खतरनाक थे कि वर्षों से पार जाने वाले खच्चर भी इन ढालों पर आकर भयभीत हो उठते थे।
प्रथम पंजाब की द्वितीय बटालियन ने सियालम बम के ठिकाने पर कब्जा किया।यह स्थान टिड्डिम से कैनेडी शिखर तथा फोर्ट हवाइन मार्ग के सामने था तथा इस पर जापानियों की कड़ी पहरेदारी थी।हमारे सैनिकों को इन्हीं विषम जंगलों से भरे तथा अभेद स्थल पर जापानियों से मुठभेड करनी पड़ी थी।हमारे सैनिकों के पास पहाड़ी तोपें थीं उन्हीं से वे मुकाबला कर रहे थे तथा दुश्मन के सम्पर्क मार्ग को विछिन्न कर रहे थे।चार सप्ताह तक प्रथम पंजाब रेजिमेंट ने जापानियों की नींद हराम कर दी तथा उन्हें व्यस्त रखा। इस स्थान पर प्रथम पंजाब रेजिमेंट के सुबेदार रामस्वरूप सिंह ने 25 अक्टूबर 1944 को विक्टोरिया क्रोस अर्जित किया।यह वीरता पदक उन्हें अदम्य साहस और असाधारण सेवा के लिए प्रदान किया गया ।उन्होंने अपने जीवन की सर्वौच्च बलि दी तथा युध्द क्षेत्र में वीरगति पाई।उनका पार्थिव शरीर” बिग हिल” पर आज भी गौरव गाथा का बखान कर रहा है।रामस्वरूप सिंह दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढे ।उन्हें मौत का डर था या नहीं ये तो नहीं कहा जा सकता किंतु यह बात स्पष्ट है कि उन्होंने मन में यह धारणा बना ली थी कि आज वे जापानियों से निपटकर ही रहेंगे।यह संकल्प उसने बटालियन से प्लाइन के युद्ध स्थल पर रवाना होते समय अपने कम्पनी कमांडर को बतलाया था।बटालियन जापानियों के एक ऐसे गढ़ पर आक्रमण कर रही थी जो प्राकृतिक रुप से स्वत: ही रक्षात्मक स्थिति में था।साथ ही जापानियों की संख्या भी अधिक थी और हाल ही में उनकी एक ताजा कुमुक भी वहां पहचीं थी।
प्रथम पंजाब के एक सेक्सन ने एक ढलान पर हमला किया और जापानियों ने जवाब में भारी गोलाबारी की।जापानियों को ऊपर आते प्रथम पंजाब के सैनिकों को निशाना बनाना सुगम दिखाई दिया।उन्होंने कड़ी मार की तथा प्रथम पंजाब के सैनिकों ने अपनी रक्षा के लिए जहां भी स्थान मिला पनाह लेने की कोशिश की।सुबेदार रामस्वरूप सिंह ने यह देख कर एक अन्य सेक्सन की कमान संभाली और उन्होंने अपने लक्ष्य की पूर्ति हेतु तथा आगे बढ़ने वाले सैनिकों के लिए रास्ता बनाने के लिए संगीन युद्ध का सहारा लिया । रामस्वरूप सिंह ने तलघरों में बैठे जापानियों पर हमला करना प्रारम्भ किया।इस प्रकार अन्त में रामस्वरूप सिंह अपने लक्ष्य की प्राप्ति में सफल हुए। जापानियों ने भी उन पर घमासान जवाबी हमला किया।इसमें रामस्वरूप सिंह दो जगह ज़खमी हुए।जांघ पर गोली लगने से उनकी दोनों टांगें लहू लुहान हो गई थी लेकिन अपने घावों की परवाह न करते हुए दुश्मन की तीनों दिशाओं से हुए आक्रमण का सामना करते हुए केवल एक एल.एम.जी. से दुश्मन से लोहा लेता रहे। एल.एम.जी. से कई जापानियो को मौत के घाट उतारा । इसमें बुरी तरह जख्मी हुए किन्तु उन्होंने साहस नहीं छोड़ा और हमला जारी रखा। उन्होंने अपनी बूट पट्टी खोली तथा जांघ के घाव पर बांध ली।इस मुठभेड में रामस्वरूप सिंह ने स्वयं चार जापानियों को संगीन से मौत के घाट उतारा तथा जापानियों के हमले को नाकामयाब कर दिया ।
रामस्वरूप सिंह ने अनोखे जोश और साहस के साथ अपनी कार्रवाई जारी रखी तथा अपने साथियों का नेतृत्व करता रहा।वह संगीन से जापानियों को घायल करता रहा तथा एक अन्य को गोली का शिकार बनाया। इतने में ही कुल पांच गज के फांसले पर से दुश्मन के मौर्चे पर से एक गोला छुटा जो सीधा रामस्वरूप सिंह की छाती में आकर लगा।
इसके बाद अपने अन्तिम सांस लेते समय अपने प्लाटून हवलदार को ऊंची आवाज में कहा “मैं तो मर रहा हूं पर तुम लडों और इन दुश्मनों का सफाया करदो “।इन शब्दों का कहना था कि सारी की सारी कंपनी में लड़ने की नई ताकत सी आ गई।
उधर जब रामस्वरूप सिंह के मृत शरीर को गोले गोलियों की बौछार में मैदान से उठा लाने की आज्ञा मिली हर किसी ने इस कठिन काम के लिए अपने आप को आगे (वालण्टियर) कर दिया।
हिन्दुस्तान के कमांडर-इन-चीफ जनरल सर क्लाड आकिनलेक ने स्वर्गीय सुबेदार रामस्वरूप सिंह को विक्टोरिया क्रोस मिलने पर प्रथम पंजाब रेजिमेंट की बटालियन को बधाई का सन्देश भेजा जिसमें —
श्री कमांडर-इन-चीफ महोदय लिखते हैं –“शोक है कि सूबेदार जीते जी यह सम्मान न ले सके।मुझे विश्वास है कि रेजिमेंट के जवानों को इनकी मृत्यु से बड़ा शोक हुआ होगा और वे उनके नाम को सदा आदर के साथ लेंगे।
प्रथम पंजाब के नाम तार में श्री कमांडर-इन-चीफ लिखते हैं:- “स्वर्गीय सुबेदार रामस्वरूप सिंह ने बज़ोड कारनामा दिखाकर रेजिमेंट के लिए पहला विक्टोरिया क्रोस जीता।फस्ट(प्रथम) बटालियन के कर्नल के रूप में मेरे लिए यह बड़े ही गर्व और अत्यंत प्रसन्नता की बात है।”
इस लड़ाई में 1291 जापानी मारे गए थे।
सुबेदार रामस्वरूप सिंह के पुत्र श्री तेजपाल सिंह अजमेर के किंग जॉर्ज स्कूल से पढकर 1962 में चीन के युद्ध के समय राजपूताना राइफल्स में भर्ती हुए।
सुबेदार रामस्वरूप सिंह के दो पोते हैं। इनके बड़े पोते श्री रिपुदमन नम्बरदार हैं जो गांव खेड़ी-तलवाना के सबसे बड़े जमींदार हैं।
दूसरे पोते श्री शिवकुमार 24 मैकेनाइज में हवलदार हैं तथा कुश्ती के कोच हैं।
सुबेदार रामस्वरूप सिंह की बहादुरी के लिए म्यान्मार(बर्मा) में तथा लंदन में इनका शहीदी स्मारक भी बनाया गया है।
सुबेदार रामस्वरूप सिंह को हरियाणा स्वर्ण जयंती पर हरियाणा गौरव सम्मान से सम्मानित किया गया।
इनके परिवार को 2 मुर्रबा जमीन सरकार की तरफ से दी गई।